Kangaroo Court: पश्चिम बंगाल में बीते दिनों महिला से सरेआम बदसलूकी या कहें कि तालिबानी सजा का वीडियो काफी तेज़ी से वायरल हो रहा था। तृणमूल कांग्रेस का लोकल लीडर एक महिला और उसके साथी को सरेआम डंडे से बुरी तरह पीट रहा था। इस हादसे के बाद एक बार फिर से देश में ‘Kangaroo Court का नाम चर्चा में आ गया है।
क्या है ‘Kangaroo Court’ ?
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी केअनुसार,Kangaroo Court बिना किसी ढंग के सबूतों के बिना किसी अपराध या दुराचार के संदिग्ध व्यक्ति का trial करता है। आम तौर पर इसे एक नकली अदालत माना जाता है जिसमें कानून और न्याय के सिद्धांत को दरकिनार किया जाता है। गैर-जिम्मेदार प्रक्रियाओं के द्वारा यह फैसले किया जाता हैं। कुल मिलाकर कहें तो kangaroo court ऐसी कार्यवाही या फिर काम को प्रदर्शित करती है जिसमें पक्षपातपूर्ण और अन्यायपूर्ण तरीके से फैसला किया जाता है।
Kangaroo Court को क्यों बेहद खतरनाक माना जाता है?
किसी भी लोकतांत्रिक और संवैधानिक देश में Kangaroo Court का होना बेहद खतरनाक माना जाता है क्योंकि kangaroo court को कई बार तालिबानी सजा से भी COMPARE किया जाता है। इसमें व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन कर के उसे गैर-कानूनी सजा दी जाती है। हालांकि, आपको बता दें कि Kangaroo Court को मीडिया ट्रायल भी माना जाता है।
क्या खाप पंचायत भी है Kangaroo Court ?
भारत में अगर Kangaroo Court के उदाहरणों की बात करें तो पश्चिम बंगाल में महिला के साथ हुई बदसलूकी की घटना भी Kangaroo Court का उदाहरण है। इसके अलावा खाप पंचायतों को भी Kangaroo Court बताया जाता रहा है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में शालिशी सभा भी खाप की तरह है।
इस मामलें में मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने क्या कहा?
कई बार मीडिया या सोशल मीडिया ट्रायल को देखें तो इसमें भी Kangaroo Court की झलक दिखती है। ट्विटर, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर किसी मामले में लोग पहले ही अपना फैसला सुना देते हैं। जबकि मामला अदालत के समक्ष होता है। कई बार मामला शुरू होने से पहले ही किसी को दोषी ठहरा दिया जाता है। कुछ साल पहले भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने भी कहा था कि मीडिया ट्रायल और Kangaroo Courtको न्याय के लिए बाधा और लोकतंत्र के लिए नुकसानदायक बताया था।
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