Flood Watch India 2.0: इस साल मॉनसून के दौरान कई राज्यों में बाढ़ ने भयंकर तबाही मचाई है। कहीं पुल बह गए, तो कहीं हजारों घर नदियों में समा गए हैं। अब आम नागरिकों को बाढ़ के खतरे के बारे में समय पर सतर्क करने के लिए केंद्रीय जल आयोग ने ‘Flood Watch India’ एप 2.0 लॉन्च किया है। इस नए और उन्नत एप के माध्यम से लोग अपने इलाके में बाढ़ के किसी भी संभावित खतरे की सटीक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। ‘Flood Watch India’ एप पर 592 बाढ़ के पूर्वानुमान और बाढ़ निगरानी स्टेशनों से संबंधित सभी जानकारी उपलब्ध है।
यह एप सटीक और समय पर बाढ़ पूर्वानुमान देने के लिए उपग्रह डेटा विश्लेषण, गणितीय मॉडलिंग और वास्तविक समय की निगरानी जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करता है।
क्या है Flood Watch India App-
कुशवेंद्र वोहरा ने कहा, “FLOODWATCH APP 2.0 की मेन स्क्रीन में हमने भारत का एक इंटरएक्टिव मैप तैयार किया है। मैप में जिन इलाकों पर ग्रीन स्पॉट है, वहां पर बाढ़ का खतरा नहीं है क्योंकि नदियों में पानी खतरे के निशान से नीचे है। ऑरेंज अलर्ट बताता है कि नदियों में पानी डेंजर लेवल के ऊपर आ चुका है और अगर रेड मार्क है तो वह उच्चतम बाढ़ स्तर की स्थिति है यानी बाढ़ का खतरा काफी ज्यादा है। आप सीधे किसी एक जगह पर क्लिक करेंगे तो आपको बाढ़ के किसी भी खतरे या नदियों और जलाशय के जलस्तर से जुड़ी सारी जानकारी लिखित में और ऑडियो के जरिए भी मिल जाएगी। अगर आप ऑरेंज कलर्ड स्पॉट पर क्लिक करेंगे तो आपको ऑडियो के जरिए चेतावनी मिलेगी कि आप नदी के करीब ना जाएं।
2500 ग्लेशियरों की मॉनिटरिंग की जाएगी–
जलवायु परिवर्तन के ग्लेशियरों पर बढ़ते प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, सेंट्रल वॉटर कमीशन ने उनकी रिस्क मैपिंग शुरू की है। वर्तमान में हिमालय क्षेत्र में 902 ग्लेशियरों की मॉनिटरिंग की जा रही है, लेकिन अब यह फैसला कर लिया गया है कि अगले दो वर्षों में 2500 ग्लेशियरों की मॉनिटरिंग की जाएगी। ग्लेशियर लेक में बाढ़ के खतरे को देखते हुए भारत सरकार ने यह कदम उठाया है। रिमोट सेंसिंग के माध्यम से हिमालय क्षेत्र में 902 ग्लेशियरों की रिस्क मैपिंग भी प्रारंभ कर दी गई हैं।
वोहरा ने क्या कहा ?
वोहरा ने कहा, “हमने रिमोट सेंसिंग के जरिए हिमालय क्षेत्र में 902 ग्लेशियरों की रिस्क मैपिंग करने की प्रक्रिया शुरू की है। हम रिमोट सेंसिंग के जरिए ग्लेशियर लेक की मैपिंग कर रहे हैं। ग्लेशियरों की साइज बढ़ रही है या घट रही है और उसका क्या असर हो सकता है, इसकी समीक्षा कर रहे हैं। हम हिमालय क्षेत्र में नए Early Warning Systems लगाएंगे, जिससे ग्लेशियर टूटने की वजह से होने वाली आपदाओं के बारे में एजेंसियों को सही वक्त पर आगाह कर सकें।”