Sir Dorabji Jayanti: ‘उठा लो टाटा का कोई भी शेयर, पुरानी कंपनी है। आज नहीं तो कल फायदा ही देगी’,हर्षद मेहता की लाइफ पर आधारित वेब सीरीज ‘स्कैम 1992’ में ये डायलॉग एक्टर प्रतीक गांधी के थे। भले ही ये मात्र एक वेब सीरीज के संवाद हों, लेकिन 21वीं सदी में यह डायलॉग एक दम सच साबित होते हुए नज़र आरही है। आज के समय में टाटा एक ऐसी कंपनी बन चुकी है जो किसी भी परिचय की मोहताज नहीं है।
जानकारी के लिए बता दें कि टाटा कंपनी की स्थापना महान उद्योगपति जमशेदजी टाटा ने की थी, लेकिन इसे नई ऊंचाई तक पहुंचाने का काम किया सर दोराबजी जमशेदजी टाटा ने की। आज उनका जन्मदिन है। आइये जानते हैं इस अवसर पर कि कैसे उन्होंने टाटा ग्रुप को नई ऊंचाई पर पहुंचाया।
Sir Dorabji Jayanti:पिता के सपनों को किया सच
महान उद्योगपति सर दोराबजी टाटा का जन्म 27 अगस्त 1859 में हुआ था। आपको बता दें कि इन्हें यह बिजनेस विरासत में मिला था। वे जमशेदजी टाटा के बड़े बेटे थे। उन्होंने बिजनेस को चलाने का तरीका और गुण अपने पिता से सिखा। लेकिन 1904 में अपने पिता की मौत के बाद दोराबजी ने टाटा समूह की कमान संभाली।
उन्होंने अपने पिता के सपनों को पूरा करने का पूरा जिम्मा उठाया और कंपनी की जिम्मेदारी संभालने के महज तीन साल बाद ही उन्होंने स्टील के क्षेत्र में कदम रखा और 1907 में टाटा स्टील और 1911 में टाटा पावर की स्थापना की।
Sir Dorabji Jayanti: नाईटहुड की मिली उपाधि
जानकर हैरान हो जाएंगे कि उस समय में टाटा स्टील देश का पहला इस्पात संयंत्र था। लोहे की खानों का अधिकतर सर्वेक्षण उन्हीं के नेतृत्व में किया गया । उन्होंने कारखाना लगाने के लिए लोहा, मैंगनीज, कोयला समेत इस्पात और खनिज पदार्थों की खोज की। साल 1910 आते-आते ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नाईटहुड की उपाधि दी। वे टाटा समूह के पहले चैयरमैन बने और 1908 से 1932 तक चैयरमैन पद पर कायम रहे।
Sir Dorabji Jayanti: जमशेदपुर को पूरी तरह से दिया बदल-
दोराबजी टाटा ही थे, जिन्होंने झारखंड के जमशेदपुर को पूरे तरह से बदल दिया। सर दोराबजी ने अपने पिता के ख्वाबों को पूरा करने के लिए जमशेदपुर का विकास किया और ये शहर औद्योगिक नगर के रूप में भारत के मानचित्र पर छा गया।
Sir Dorabji Jayanti:भारतीय दल की आर्थिक तौर पर की सहायता
उद्योग के अलावा दोराबजी टाटा की खेल में भी बहुत रूचि थी। कैम्ब्रिज में बिताए दो सालों के दौरान उन्होंने खेलों में अपनी सबसे अलग पहचान बनाई। वह क्रिकेट और फुटबॉल भी खेलना जानते थे। उन्होंने अपने कॉलेज के लिए टेनिस भी खेला है साथ ही खेल में प्रतिभा होने के साथ वह एक अच्छे घुड़सवार भी थे।उन्होंने भारत को 1920 में पहली बार ओलंपिक में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। भारतीय ओलंपिक परिषद के अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने 1924 के पेरिस ओलंपिक के लिए भारतीय दल की आर्थिक तौर पर सहायता की।
दोराबजी ने मौत से पहले अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा दान कर दिया। इसी से ही सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट की स्थापना हुई। 11 अप्रैल 1932 को सर दोराबजी यूरोप की यात्रा पर गए। इसी यात्रा के दौरान 3 जून 1932 को जर्मनी के बैड किसेनगेन में उनकी मौत हो गई। बाद में इन्हें इंग्लैंड के ब्रुकवुड कब्रिस्तान में उनकी दिवंगत पत्नी लेडी मेहरबाई टाटा के बगल में दफनाया गया। दोनों की कोई संतान नहीं थी।
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