Ganesh Chaturthi Vrat Katha: आज पूरे देश में धूम धाम के साथ गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जा रहा है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार चतुर्थी का बहुत बड़ा महत्त्व होता है। देखा जाए तो हर महीने गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता है जानकारी के लिए बता दें कि, इस उपवास को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है, लेकिन भाद्रपद मास में आने वाली गणेश चतुर्थी की अगल बात होती है क्योंकि इस दिन से गणेश उत्सव की शुरुआत होती है।
जिसकी धूम पूरे देशभर में दिखाई देती है। इस दिन बप्पा को घर में विराजित किया जाता है और 10 दिनों तक उनकी सेवा और पूजा की जाती है। इसके बाद बप्पा का विसर्जन कर दिया जाता है। यहां बता दें कि, गणेश चतुर्थी के दिन व्रत तो किया जाता है और पूरे विधि विधान से भगवान गणेश की पूजा भी की जाती है लेकिन ऐसा कहा जाता है कि यह व्रत बिना कथा के अधूरा होता है। आइए जानते हैं गणेश चतुर्थी का शुभ मुहूर्त और व्रत कथा के बारे में।
Ganesh Chaturthi Vrat Katha: क्या है शुभ मुहूर्त ?
पंचांग के अनुसार, गणेश चतुर्थी तिथि का आरंभ 6 सितंबर की दोपहर 3 बजकर 01 से होगा और समापन 7 सितंबर की शाम 5 बजकर 37 पर होगा। उदयातिथि होने के कारण गणेश चतुर्थी 7 तारीख को ही मनाई जाएगी। जिसके लिए मूर्ति स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 4 मिनट से दोपहर 1 बजकर 34 मिनट तक रहेगा।
Ganesh Chaturthi Vrat Katha: पढ़ें गणेश चतुर्थी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, बात उस समय की है जब भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का विवाह हुआ था। इस विवाह में शामिल होने के लिए सभी देवी-देवताओं, गंधर्वों और ऋषियों-मुनियों को निमंत्रण दिया गया लेकिन भगवान गणेश को आमंत्रण नहीं किया। इस विवाह के बारात में जब सभी शामिल हुए तो भगवान गणेश के ना आने का कारण पूछा, जिस पर भगवान विष्णु ने कहा कि भगवान शिव को न्यौता दिया गया है और यदि गणेश उनके साथ आना चाहते हैं तो आ जाएं।
भगवान विष्णु ने यह भी कहा कि गणेश जी भोजन बहुत ज्यादा करते हैं और हम किसी और के घर उन्हें भरपेट भोजन कैसे कराएंगे। इस पर देवताओं ने एक सुझाव रखा कि गणेश जी को बुला लेते हैं, लेकिन उन्हें विष्णुलोक की सुरक्षा करने को कह देंगे, जिससे वे बारात में नहीं जा सकेंगे। ऐसे में बुलाने का कार्य भी पूरा हो जाएगा और भोजन कराने से भी बचा जा सकेगा।
सब कुछ सोचने के बाद अंत में ऐसा ही किया गया और गणेश जी सुरक्षा के लिए रुक गए, लेकिन वे कहीं ना कहीं सभी से नाराज़ भी थे और इसी बीच जब नारद मुनी वहां आए तो बप्पा के गुस्सा का कारण जाना। इसके बाद उन्होंने गणेश जी को चूहों की सेना को भेजकर बारात का रास्ता खुदवाने की सलाह दी। जिससे सभी को गणेश जी की अहमियत समझ आई।
बप्पा ने ऐसा ही किया और जब बारात का रथ गड्ढों में धंस गया और उसने गणेश जी की आराधना कर रथ के पहिए ठीक किए। इससे सभी को गणेश की पूजा का महत्व समझ आया और इसके बाद उनका विवाह बिना विघ्न के पूर्ण हुआ। इस तरह बप्पा विघ्नहर्ता भी कहलाए।