Roopkund Lake: भारत में ऐसी बहुत सी चीजें पाई जाती हैं जो दिखने के साथ-साथ सुनने में भी अजीब लगती है। बता दें कि इन रहस्यों को आजतक कोई भी नहीं सुलझा पाया है। उन्हीं में से देश में एक ऐसी झील है जो इंसानों के कंकालों से पटी पड़ी है। ये कोई और झील नहीं बल्कि भारत के हिस्से में आने वाले हिमालयी क्षेत्र की बर्फीली चोटियों के बीच मौजूद रूपकुंड झील है। बता दें कि इस झील में बहुत पहले से ही इंसानी हड्डियां बिखरी पड़ी हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि समुद्रतल से लगभग 16,500 फीट की ऊंचाई पर मौजूद ये झील हिमालय की तीन चोटियों, जिन्हें त्रिशूल के नाम से जाना जाता है बता दें कि ये झील इन्ही के बीच मौजूद है। गौरतलब है कि त्रिशूल को भारत की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में गिना जाता है, जो कि उत्तराखंड के कुमाऊ क्षेत्र में स्थित हैं।।
Roopkund Lake: इस झील से 600 से 800 मानव कंकाल बरामद हुए हैं
जानकारी के मुताबिक, इस रूपकुंड झील को कंकालों की झील कहा जाता है। झील के चारों जगह अगर नज़र फेरी जाए तो आपको हर तरफ बर्फ में हड्डियां दबी हुई दिखाई देगी। साल 1942 में एक ब्रिटिश रेंजर को गश्त के दौरान ये झील दिखाई दी थी। लगभग एक सदी से मानवविज्ञानी और वैज्ञानिक इन कंकालों का अध्ययन कर रहे हैं। ये झील पर्यटकों की जिज्ञासा का कारण बनी हुई है। बड़ी संख्या में पर्यटक इस झील को देखने आते हैं।
इस झील पर जमी हुई बर्फ जब पिघल जाती है तब यहां इंसानी कंकाल दिखाई देते हैं। अबतक इस झील से 600 से 800 मानव कंकाल बरामद हुए हैं। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड सरकार इसे ‘रहस्यमयी झील’ बताती है। वैज्ञानिक इस बात का अब भी अध्ययन करने में जुटे हुए हैं कि ये कंकाल किन लोगों के हैं, इन लोगों की मौत कैसे हुई और ये कहां से आए थे, लेकिन अभी तक वैज्ञानिक इस गुत्थी को सुलझा नहीं पाए हैं।
Roopkund Lake: क्या कहती है कहानी ?
यह कहानी रूपकुंड झील की है, जो उत्तराखंड में स्थित है और इसे “कंकालों की झील” के नाम से भी जाना जाता है। इस झील में बड़ी संख्या में मानव कंकाल पाए गए हैं, जो सदियों से एक रहस्य बने हुए हैं।प्रचलित लोककथाओं और मतों के अनुसार, इन कंकालों से जुड़े कई सिद्धांत हैं। इनमें से एक कहानी यह है कि ये कंकाल एक भारतीय राजा, उनकी रानी, और उनके सेवकों के हैं, जो लगभग 870 साल पहले एक तीर्थ यात्रा पर निकले थे। रास्ते में एक भयंकर बर्फीले तूफान की चपेट में आकर उनकी मौत हो गई थी, और उनके शव वहीं दब गए थे।
दूसरा मत यह है कि इनमें से कुछ कंकाल 1841 में तिब्बत पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे भारतीय सैनिकों के हैं। जब उनकी कोशिश विफल हुई, तो लौटते समय करीब 70 सैनिकों की हिमालय की ठंडी पहाड़ियों में मौत हो गई थी।विभिन्न शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों द्वारा भी इन कंकालों का अध्ययन किया गया है, जिसमें यह पाया गया है कि इन कंकालों की उत्पत्ति और समय विभिन्न हैं, जिससे यह रहस्य और भी गहरा हो जाता है।
Roopkund Lake: किसी ने इसे कहा कब्रगाह
रूपकुंड झील की एक और कहानी बताती है कि यह स्थान एक कब्रगाह हो सकता है, जहां महामारी या किसी अन्य कारण से मारे गए लोगों को दफनाया गया हो। हालांकि, इस क्षेत्र के आसपास के गांवों में एक और प्रचलित लोकगीत है जो इस रहस्य को एक अलग दृष्टिकोण से समझाता है।
इस लोकगीत के अनुसार, यहां पूजी जाने वाली नंदा देवी, जिन्हें क्षेत्र की देवी माना जाता है, ने एक लोहे जैसा प्रचंड तूफान खड़ा किया था। यह तूफान तब आया जब कुछ लोग उनकी सीमा का उल्लंघन कर रहे थे या उन्होंने देवी का अपमान किया था। इस तूफान के कारण झील को पार करने की कोशिश करने वाले लोगों की मौत हो गई, और उनके शव झील में गिर गए, जिनके कंकाल आज भी वहां मौजूद हैं।
यह कहानी एक तरह से इस स्थान से जुड़े धार्मिक और पौराणिक विश्वासों को दर्शाती है, जिसमें प्रकृति और देवी की शक्ति को प्रकट किया गया है। हालांकि, वैज्ञानिक रूप से यह स्थान एक रहस्य बना हुआ है, और इन कंकालों की उत्पत्ति और उनके पीछे की कहानी का सही-सही पता लगाना अब भी चुनौती बना हुआ है।