Maharashtra: महाराष्ट्र के बीड में ससुर के प्रेम विवाह करने पर जाति पंचायत द्वारा एक महिला और उसके रिश्तेदारों का सामाजिक बहिष्कार किया गया। इस मामले में पंचायत के नौ सदस्यों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है। सामाजिक बहिष्कार जैसी घटनाएं कानून और मानवाधिकारों के उल्लंघन का प्रतीक हैं, और प्रशासन ने सख्त कार्रवाई शुरू कर दी है। यह घटना जातिगत पंचायतों की अनैतिक प्रथाओं पर रोशनी डालती है, जिससे पीड़ितों को न्याय दिलाने के प्रयास तेज किए जा रहे हैं।
Maharashtra: 800 समुदाय के लोग मौजूद थे
पुलिस के अनुसार, मालन फूलमाली अपने पति शिवाजी और बच्चों के साथ बीड जिले के कड़ा कारखाना इलाके में रहती हैं। उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को 21 सितंबर को डोइथान गांव में पंचायत के सामने पेश होने के लिए कहा गया। पंचायत में मालन और उनके परिवार के सामने नौ पंच और लगभग 800 समुदाय के लोग मौजूद थे। पंचायत सदस्यों ने मालन को बताया कि उनके ससुर नरसू फूलमाली ने पंचायत की सहमति के बिना प्रेम विवाह किया है। इसके परिणामस्वरूप, नरसू पर 2.5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया। यह मामला सामाजिक दबाव और पंचायतों की कार्यप्रणाली को दर्शाता है।
Maharashtra: परिवार को जान से मारने की मिली धमकी
महिला ने बताया कि जब उसके ससुर जुर्माना अदा नहीं कर सके, तो पंचायत ने मालन और उसके परिवार को जुर्माना भरने के लिए कहा। पंचायत सदस्यों ने पुलिस से संपर्क करने पर परिवार को जान से मारने की धमकी भी दी। जब मालन ने जुर्माना देने में असमर्थता जताई, तो पंचायत ने परिवार को सात पीढ़ियों के लिए समुदाय से सामाजिक बहिष्कार का आदेश दिया। यह घटना न केवल महिला के परिवार के लिए भयावह है, बल्कि यह जातिगत पंचायतों की मनमानी और कानून के प्रति अवहेलना को भी उजागर करती है। ऐसे मामलों में प्रशासन की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है ताकि न्याय और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
Maharashtra: इनके खिलाफ़ हुआ मुकदमा दर्ज
अधिकारी ने बताया कि इसके बाद महिला ने पुलिस से संपर्क किया और अपनी शिकायत दर्ज कराई। महिला की शिकायत के आधार पर गंगाधर पालवे, उत्तम फूलमाली, गंगा फूलमाली, चिन्नू फूलमाली, सुभाष फूलमाली, बाबूराव फूलमाली, शेतिबा काकड़े, सयाजी फूलमाली, और गुलाब पालवे के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। पुलिस इस मामले की जांच कर रही है, लेकिन अभी तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है। यह मामला जातिगत पंचायतों की अव्यवस्था और मानवाधिकारों के उल्लंघन को उजागर करता है, जिससे न्याय की प्रक्रिया में प्रशासन की सक्रियता की आवश्यकता है।