Nainital: उत्तराखंड के नैनीताल का इतिहास बेहद पुराना है। प्राचीन स्थान होने के साथ यहां पर बहुत सी ऐसी धरोहार भी मौजूद है जिसे देखने के लिए देश के कोने कोने से पर्यटक आते है। यहां स्थित ऐतिहासिक धरोहरें यहां के इतिहास को समेटे हुए हैं। ऐसी ही एक धरोहर नैनीताल से लगभग 11 किमी की दूरी पर भवाली में स्थित है। जिसे भवाली के ताजमहल के नाम से जाना जाता है।
क्यों बनाई गई इमारत-
भवाली का ताजमहल बेहद ही खुबसूरत है। यह राजपूत घराने का विरासत भी है। दरअसल, इस धरोहर का निर्माण बीकानेर के राठौर वंश के राजघराने की राजकुमारी चांद कुंवर उर्फ लल्ली की याद में बनाया गया था। जिनकी मृत्यु मात्र 16 साल की उम्र में हो गई थी। जिसके बाद उनके पिता द्वारा भवाली घोड़ाखाल रोड के किनारे उन्हें दफनाया गया और उस जगह उनकी याद में एक इमारत बनाई गई। जिसे लल्ली की कब्र भी कहा जाता है।
प्रसिद्ध इतिहासकार ने क्या बताया ?
प्रसिद्ध इतिहासकार और प्रोफेसर अजय रावत बताते हैं कि लल्ली का मंदिर ऐतिहासिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है। साथ ही साथ पर्यावरण और पर्यटन के लिए भी महत्वपूर्ण है। लल्ली मूल रूप से बीकानेर की राजकुमारी थी, जो बीकानेर के राजा गंगा सिंह की सुपुत्री थी। इनका जन्म साल 1899 में हुआ था, लेकिन 16 साल की उम्र में इन्हें टीबी हो गया था। जिसके बाद इनका इलाज भवाली स्थित टीबी सेनेटोरियम में किया गया। वहीं, साल 1915 में इनकी मृत्यु हो गई थी। उनकी याद में उनके पिताजी ने भवाली में एक स्मृति स्मारक बनाई थी। जिसे लल्ली की कब्र के नाम से जाना जाता है। इसे लल्ली मंदिर भी कहा जाता है।
कौन थी लल्ली ?
प्रोफेसर रावत बताते हैं कि लल्ली का मंदिर बेहद खुबसूरत और सुन्दर था। लेकिन इसके आस-पास अतिक्रमण होने के बाद इसकी खूबसूरती कम हो गई। वहीं भीमताल, नौकुचियताल जाने वाले लोग अक्सर लल्ली के मंदिर में आते थे। यहां लल्ली का असली नाम चांद कुंवर बाई था। ये राठौड़ वंश की थी। उन्होंने बताया की लल्ली के पिता का नाम गंगा सिंह था। वह बीकानेर के राजा थे। बीकानेर उस दौर में बेहद प्रगतिशील राज्य था। चारों तरफ हरियाली थी। लल्ली को तब भवाली सेनिटोरियम लाया गया, जब उनकी हालत बेहद खराब थी। वहीं, साल 1947 से पहले टीबी का कोई इलाज नहीं था, लेकिन चीड़ के पेड़ की हवा टीबी के इलाज में लाभप्रद थी।
राजस्थान सरकार क्यों करती है रख-रखाव ?
भवाली में मौजुद लल्ली की कब्र है जिसे लल्ली के मंदिर के नाम से भी जानते है। बता दें कि इसे राजस्थान सरकार के अंतर्गत आने वाले देवस्थान विभाग द्वारा प्रबंधित और संरक्षित की जाती है। यह भवाली के इतिहास को काफी महत्त्वपूर्ण बनाती व रखती भी है। इसलिए इसे भवाली का ताजमहल कहा जाता है। इस ऐतिहासिक धरोहर के रख रखाव के लिए आज भी राजस्थान सरकार इस धरोहर के लिए पैसा देती है