Creamy Layer: सुप्रीम कोर्ट ने SC-ST आरक्षण को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि SC–ST में सह कैटेगरी बनाकर अधिक पिछड़े लोगों को अलग से कोटा देने की इजाजत है। यह फैसला सात जजों की एक संविधान पीठ ने अनुसूचित जाति/जनजाति के आरक्षण के लिए कोटे के अंदर कोटे को मंजूरी दे दी गई है।
सात जजों के एक संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है। फैसला सुनाने वाले एक जज ने कहा कि वो इस बात से सहमत हैं कि OBC पर लागू क्रीमी लेयर का सिद्धांत SC–ST पर भी लागू होता है। इस संविधान पीठ में CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस BR गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्र और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे। बहुमत के इस फैसले से जस्टिस बेला त्रिवेदी ने अपनी असहमति जताई।
इसे लेकर CJI चंद्रचूड़ ने क्या कहा?
फैसला सुनाते हुए CJI DY चंद्रचूड़ ने कहा कि छह जज निर्णय के पक्ष में हैं, सभी एकमत हैं। इस तरह बहुमत ने 2004 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से EV चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार मामले में दिए उस फैसले को खारिज कर दिया और जिसमें कहा गया था कि SC-ST के आरक्षण में उप वर्गीकरण की इजाजत नहीं है।
इस पीठ ने मुख्य तौर पर दो पहलुओं पर विचार किया गया,पहला यह कि क्या आरक्षित जातियों के उप-वर्गीकरण की इजाजत दी जानी चाहिए और दूसरा यह कि ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में दिए गए फैसले की सत्यता, जिसमें कहा गया था कि अनुच्छेद 341 के तहत अधिसूचित अनुसूचित जातियां समरूप समूह हैं और उन्हें आगे उप-वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है।अदालत ने कहा है कि अनुसूचित जातियों के उप वर्गीकरण के आधार को राज्यों द्वारा परिमाणात्मक और प्रदर्शनीय आंकड़ों द्वारा उचित ठहराया जाना चाहिए।अदालत ने कहा कि राज्य यह काम अपनी मर्जी से नहीं कर सकता है।
OBCके लिए कितने फीसदी आरक्षण का provision?
वैसे देखा जाए तो देश में OBC वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। इसके लिए सरकार की ओर से कुछ नियम भी बनाए गए हैं। लेकिन नियमों के अनुसार, हर OBC उम्मीदवार इस आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकता है। जिसके कारण OBC वर्ग को क्रीमी और नॉन क्रीमी लेयर में बांटा जाता है और इस आरक्षण का लाभ नॉन क्रीमी OBC अभ्यर्थियों को ही मिलता है।
पहली बार कब हुआ “क्रीमी लेयर” शब्द का इस्तेमाल?
साल 1971 में पहली बार क्रीमी लेयर शब्द सत्तानाथन आयोग ने उपयोग किया था। तब आयोग की ओर से आदेश दिया गया था कि क्रीमी लेयर में आने वाले को सिविल सेवा के पदों में आरक्षण से बाहर रखा जाना चाहिए। उस वक्त सत्तानाथन समिति ने क्रीमी लेयर में आने वाले OBC परिवारों की कुल स्रोतों से कुल वार्षिक आय एक लाख रुपए और उससे अधिक निर्धारित की थी।
2014 में इस राशि को संशोधित कर 2.5 लाख रुपये सालाना कर दिया गया। साल 2008 में इसे 4.5 लाख, 2013 में बढ़ाकर 6 लाख और 2017 में इस राशि को 8 लाख रुपए प्रतिवर्ष कर दिया गया। मतलब 8 लाख या उससे अधिक आय वाले OBC परिवार क्रीमी लेयर के दायरे में आएंगे और उनको OBC आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।
क्यों हुआ क्रीमी लेयर का प्रावधान ?
इसके साथ ही कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने यह भी निर्धारित किया था कि OBC परिवारों के लिए आय सीमा में हर तीन साल में संशोधन किया जाएगा। यह और बात है कि 2017 में संशोधन के बाद से इसमें कोई संशोधन नहीं किया गया। यही नहीं, साल 1992 में भी यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। तब इंदिरा साहनी के मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से आरक्षण कायम रखा गया था।
इसके साथ ही OBC की क्रीमी लेयर के मानदंड तय करने के लिए सेवानिवृत्त जज आरएन प्रसाद की अगुवाई में एक विशेषज्ञ समिति बनाई गई थी। इस समिति की ओर से दिए गए सुझावों पर 8 सितंबर 1993 को डीओपीटी ने कुछ रैंक/स्थिति/आय वालों की अलग-अलग श्रेणियों की लिस्ट बनाई थी। इस लिस्ट में शामिल लोगों के बच्चों को OBCआरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता। यह प्रावधान इसलिए किया गया था, ताकि जरूरतमंदों को ही आरक्षण का लाभ लेकर आगे बढ़ाया जा सके और सक्षम लोग इसके दायरे में न आएं।
किसे मिलेगा OBCआरक्षण का लाभ-
DOPT की सूची के अनुसार, सालाना आठ लाख रुपए या इससे ज्यादा आय वाले OBC परिवार का कोई सदस्य सरकारी नौकरी में है तो उसको क्रीमी लेयर की कैटेगरी में रखा जाता है। इसमें खेती से होने वाली आय को शामिल नहीं किया जाता है। इस नियम में सरकारी सेवा वाले किसी OBCपरिवार के बच्चे के लिए माता-पिता की रैंक का काफी महत्व होता है। यानी ऐसे बच्चों के लिए OBCआरक्षण की सीमा उनके माता-पिता की रैंक के आधार पर तय होती है और वेतन से उनकी आय नहीं देखी जाती है। उदाहरण के लिए आपको बता दें कि अगर किसी OBCअभ्यर्ती के माता-पिता में से कोई एक या दोनों संवैधानिक पद पर है तो, उसको आरक्षण का फायदा नहीं मिलेगा।
संवैधानिक पदों में राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज, संघ लोक सेवा आयोग के चेयरमैन या सदस्य, राज्यों के लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के साथ ही मुख्य निर्वाचन आयुक्त शामिल हैं।
क्या सरकारी नौकरी कर्मचारी के बच्चों को मिलेगा लाभ ?
किसी OBC अभ्यर्थी की माता या पिता में कोई एक या दोनों सीधे ग्रुप-ए की सेवा में शामिल हुए हों अथवा दोनों ग्रुप-बी सेवा में हों तो उनको भी क्रीमी लेयर में रखा जाता है। माता-पिता या कोई एक 40 साल की उम्र से पहले पदोन्नति पाकर ग्रुप-ए में शामिल होते हैं तो भी उनके बच्चे क्रीमी लेयर में आते हैं। PUBLIC SECTOR की कंपनियों (PSU), बैंक, बीमा कंपनियों के अधिकारी, विश्वविद्यालयों के अधिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर के साथ ही किसी Private Sector के उच्च अधिकारी के बच्चे भी क्रीमी लेयर में आते हैं।अगर OBC वर्ग के उम्मीदवार के परिवार का शहर में अपना घर हो, अच्छी आय के साथ अपनी जमीन हो, सेना में कर्नल, नौसेना-वायुसेना में इसी के समान रैंक के अधिकारियों के बच्चे भी क्रीमी लेयर में आते हैं।