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UTTARAKHAND: पहाड़ों को काटने के लिए बड़ी मात्रा में विस्फोटक का इस्तेमाल, वैज्ञानिकों में चिंता का माहौल

UTTARAKHAND: प्रदेश में सुरंग और सड़क आदि जब निर्माण किया जाता है तो कई पहाड़ों को काटा जाता है और इन्हें काटने के लिए या भेदने के लिए जब विस्पोट किया जाता है तो उससे कई पहाड़ कापने लगते हैं। जिसके वजह से बहुत सी समस्या होने लगती हैं चलिए जानते हैं…

UTTARAKHAND: शॉक कंट्रोल आधारित नोनल डेटोनेशन सिस्टम का प्रयोग

बता दें कि, सही तकनीकी के अभाव में विस्फोट की 50 प्रतिशत ऊर्जा पत्थरों को तोड़ने के बजाय बाहर की तरफ जाकर बर्बाद की जाती है। वैज्ञानिक पहाड़ों की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाते हैं और वहीँ वैज्ञानिक शॉक कंट्रोल आधारित नोनल डेटोनेशन सिस्टम का प्रयोग कर इस कंपन को काफी हद तक कम किए जाने की कोशिश कर रहे हैं।

UTTARAKHAND: भू-धंसाव के साथ मकानों की दीवारों, छतों आदि में दरार

अक्सर देखा जाता है कि पहाड़ी राज्यों के विकास के लिए कई पहाड़ों को काटना पड़ जाता हैं जिसकी वजह से बड़ी मात्रा में विस्फोटकों का इस्तेमाल किया जाता है। जिसके कारण, पहाड़ों पर जगह-जगह भूस्खलन, भू-धंसाव के साथ मकानों की दीवारों, छतों और फर्श आदि में दरारें आ रही हैं। पिछले साल जोशीमठ में इस तरह की घटनाएं देखने को मिली थीं। इसके बाद कई घरों को खाली कराना पड़ा था।

UTTARAKHAND: दर्जन से अधिक घरों में देखने को मिली  दरारें 

फिलहाल में ऐसा देखा जा रहा है कि इसके कारण हाल ही में बागेश्वर जिले में लगभग दो दर्जन से अधिक घरों में दरारें देखने को मिली थीं। इन घटनाओं के कारण पहाड़ पर रह रहे लोगों की समस्या बढ़ा दी हैं। ऐसे में जहां-जहां आपदा के चिह्न भवनों और पहाड़ों में दरारों के रूप में सामने आ रहे हैं, वहां लोग निर्माण में इस्तेमाल किए जा रहे विस्फोटकों को जिम्मेदार बताते रहे हैं। हालांकि, परियोजना से जुड़े अधिकारी विस्फोट से पहाड़ को किसी तरह के नुकसान होने की आशंका से इन्कार करते रहे हैं।

UTTARAKHAND:विस्फोट के लिए नोनल डेटोनेशन सिस्टम का प्रयोग 

पहाड़ों में टनल निर्माण की तकनीकी को लेकर वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी में पहुंचे आईआईटी पटना के निदेशक प्रो.टीएन सिंह ने बातचीत में बताया कि टनल के निर्माण के दौरान किए जाने वाले विस्फोट से करीब 400 मीटर तक पहाड़ प्रभावित होते हैं।

लेकिन इस दूरी को आसानी से कम और ज्यादा किया जा सकता है, जो पहाड़ की स्थिरता और मजबूती पर निर्भर करती है। उन्होंने बताया कि विस्फोटक को सही जगह और स्थिति में रखे जाने से इसे कम करने का प्रयास किया जाता है। लेकिन, विस्फोट के लिए नोनल डेटोनेशन सिस्टम का इस्तेमाल होना चाहिए, जो कंपनी और ध्वनि को एक तरह से सोखता है। इससे कंपन की दूरी 100 मीटर तक सीमित रह जाती है।

UTTARAKHAND: राइफल आदि निर्माण में भी  किया जाता उपयोग 

प्रो. टीएन सिंह ने बताया कि नोनल तकनीक के सिस्टम में छोटे-छोटे छेद होते हैं, जो 25 से 50 मिली सेकंड के अंतर पर विस्फोट से होने वाली ध्वनि को नियंत्रित करता है। इसका राइफल आदि निर्माण में भी उपयोग किया जाता है।

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