KALA PANI: काला पानी की सजा’ बीते जमाने की एक ऐसी सजा थी, जिसके नाम से कैदी कांपने लगते थे। दरअसल, यह एक जेल थी, जिसे सेल्यूलर जेल के नाम से जाना जाता था। आज भी लोग इसे इसी नाम से जानते हैं। यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है। आइये जानते है विस्तार से।
अंग्रेजी हुकूमत के दौर में काला पानी की सजा की खबरें आप आज भी सुनते होंगे। अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर बनी सेल्युलर जेल आज भी काला पानी की दर्दनाक दास्तां सुनाती है। आखिर ऐसा क्या था इस सजा में जो आज तक इसकी चर्चा की जाती है। क्यों इसे क्रूरतम श्रेणी में गिना जाता है, आइए जानते हैं…
सेल्यूलर जेल’ अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है. इस जेल के निर्माण का ख्याल अंग्रेजों के दिमाग में 1857 के विद्रोह के बाद आया था। अर्थात इस जेल का निर्माण अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए किया गया था। इसका निर्माण कार्य 1896 में शुरू हुआ था और 1906 में यह बनकर तैयार हो गई थी। जिस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को इस सेल्यूलर जेल में भेजा जाता था उसे साधारण बोल चाल की भाषा में कहा जाता थी कि उसे काला पानी की सजा हुई है।
KALA PANI: आइये जानते है इस जेल का नाम सेल्युलर क्यों पड़ा?
इस जेल का नाम सेल्यूलर पड़ने के पीछे एक वजह है। दरअसल, यहां हर कैदी के लिए एक अलग सेल होती थी और हर कैदी को अलग-अलग ही रखा जाता था, ताकि वो एक दूसरे से बात न कर सकें। ऐसे में कैदी बिल्कुल अकेले पड़ जाते थे और वो अकेलापन उनके लिए सबसे भयानक होता था।
KALA PANI: ऐसी थी यहां की अमानवीय यातनाएं-
प्रायः सजा अमानवीय होती थी, जो कि पिसाई करने वाली मिल पर अतिरिक्त घंटों का काम करने से लेकर एक सप्ताह तक हथकड़ी पहनकर खड़े रहने, बागवानी, गरी सुखाने, रस्सी बनाने, नारियल की जटा तैयार करने, कालीन बनाने, तौलिया बुनने, छह महीने तक बेड़ियों में जकड़े रहने, एकांत काल कोठरी में कैद रहने, चार दिनों तक भूखा रखने और दस दिनों के लिए सलाखों के पीछे रहने तक फैली हुई थी, एक सजा ऐसी भयावह थी जिसमें पीड़ित को अपने शरीर से पैरों को अलग करने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
KALA PANI: किन लोगों को झेलना पड़ा ‘कालापानी’ का दंश ?
हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने सदैव ही देश के लिए बहुत बड़े बड़े समर्पण किए हैं. जिनमें से एक सेल्यूलर जेल में सजा काटना भी था। सन 1938 में महात्मा गांधी और रविंद्र नाथ टैगोर ने अपने कठिन प्रयासों से सेल्यूलर जेल के जेलर को सभी कैदियों को रिहा करने पर मजबूर कर दिया। अंग्रेजों द्वारा दिए जाने वाले अत्याचारों से परेशान होकर वहां से 6 मार्च 1868 में 238 कैदियों ने भागने की कोशिश की,जैसा कि हमने बताया कि जेल के चारों ओर समुद्र और पानी ही पानी था
जिसकी वजह से वे जल्द ही पकड़े गए। जिनमें से एक कैदी ने तो डर के मारे आत्महत्या ही कर ली और 87 कैदियों को वहां के जेलर ने फांसी की सजा सुनाई क्योंकि वे उनके नियम कानूनों को तोड़कर वहां से भागने का प्रयास कर चुके थे। उसमे स्वतंत्रता सेनानी सावरकर के भाई बाबूराम सावरकर, डॉ दीवन सिंह, योगेन्द्र शुक्ला, मौलवी अब्दुल रहीम सदिकपुरी, भाई परमानंद, शदन चन्द्र चटर्जी, सोहन सिंह, वमन राव जोशी, नंद गोपाल, महावीर सिंह जैसे आदि को ‘कालापानी’ के दंश को झेलना पड़ा था।