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कभी नैनीताल की ठंड में राहत देता था कोयला टाल, अब इतिहास के पन्नों में दर्ज़ हो जाएगा इसका नाम

उत्तराखंड के नैनीताल में स्थित ब्रिटिशकालीन कोयला टाल जल्द इतिहास बन जाएगा. लकड़ी टाल भूमि पर बसे 21 परिवारों के आवासों को ध्वस्त किया जाएगा. पालिका की ओर से आवास खाली कराने को दिये गए नोटिस की अवधि समाप्त हो गई है. अतिक्रमण ध्वस्तीकरण के बाद प्रस्तावित स्थल पर मैकेनाइज्ड पार्किंग के लिए 13.41 करोड़ रुपये का बजट भी जारी हो चुका है. ब्रिटिशकाल में 1860 के दशक में शहर के समीपवर्ती मुक्तेश्वर, रामगढ़, ओखलकांडा क्षेत्र में सेब की खेती व फल उत्पादन के लिए बांज के जंगलों का कटान किया गया. जिसके बाद बांज की लकड़ी का कोयला बनाकर यहां रखा गया था, जिस वजह से इस कोयला टाल का निर्माण किया गया।

नैनीताल निवासी प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर अजय रावत ने बातचीत में कहा कि उस दौर में सर हेनरी रैमजे के आने के बाद कोयला टाल का निर्माण हुआ. रैमजे ने सोचा कि ठंड में आग तापने के लिए नैनीताल शहरवासियों को कोयले की जरूरत होगी. निकटवर्ती रामगढ़, मुक्तेश्वर में सेब की खेती के लिए बांज के पेड़ों का कटान किया गया. कटे पेड़ों की लकड़ी के निस्तारण के लिए अंग्रेज बांज की लकड़ी को जलाकर कोयला उत्पादन करने लगे और नैनीताल में कड़कड़ाती ठंड के चलते जलौनी लकड़ी और कोयले की मांग ज्यादा थी।

उन्होंने कहा कि साल 1870 के आसपास नैनीताल के तल्लीताल में कोयला टाल स्थापित किया गया. खेती व बागवानी के लिए कटे बांज के जंगलों से कोयला उत्पादन कर टाल तक लाया जाता था, जिसकी आपूर्ति खासकर सरकारी कार्यालयों और शहरवासियों में की जाती थी. आजादी के बाद भी इस कोयला टाल का महत्व कम नहीं हुआ. शहर में ठंड होने के कारण बांज के कोयले की मांग बनी रही. साथ ही बांज के कोयले के लिए वन विभाग से सिफारिश भी करनी पड़ती थी लेकिन 1986 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर समुद्रतल से एक हजार मीटर से अधिक ऊंचाई पर पेड़ कटान पर रोक लगने के बाद कोयले की आपूर्ति कम होने लगी। 

दूसरी ओर बिजली से संचालित हीटर व अन्य उपकरणों का प्रयोग बढ़ने से लोगों ने भी कोयले पर निर्भरता खत्म कर दी लेकिन उत्तराखंड राज्य बनने के बाद भी कोयला टाल का संचालन होता रहा। 2005 के करीब कोयला टाल पूरी तरह बंद हो गया. अब पार्किंग निर्माण के बाद कोयला टाल महज इतिहास बनकर रह जाएगा।

कैसे हम अपने इतिहास को जान पाएंगे ?

प्रोफेसर रावत बताते हैं कि नैनीताल स्थित कोयला टाल सिर्फ उत्तराखंड के इतिहास से ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के वानिकी व पर्यावरण के विकास से भी जुड़ा हुआ है. समय बीतते-बीतते यदि हम अपनी जड़ों को ही भूल जाएंगे, तो हम अपने इतिहास को कैसे जान पाएंगे और इतनी पुरानी धरोहर के ध्वस्तीकरण का फैसला बेहद गलत है. उन्होंने कहा कि नैनीताल का बलियानाला बेहद संवेदनशील है, जहां किसी भी प्रकार का कोई भी बड़ा निर्माण संभव नहीं है। वहीं साल 1995 के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि बलियानाला का ट्रीटमेंट युद्ध स्तर पर होना चाहिए. नैनीताल शहर के अस्तित्व के लिए बलियानाला का ट्रीटमेंट जरूरी है. पार्किंग जैसा बड़ा निर्माण बलियानाला के ऊपर करना नैनीताल को खतरे में डालने जैसा है।

150 साल से रह रहे परिवारों के सामने बन रही है संकट की स्थिति-

स्थानीय निवासी हेमंत कुमार ने कहा कि कोयला टाल अंग्रेजों के समय से यहां स्थित है. यह जगह बलियानाला से लगी हुई है. आए दिन यहां बारिश का पानी भरने और भूस्खलन की घटनाएं होती रहती हैं. ऐसे में प्रशासन द्वारा यहां पर पार्किंग निर्माण बेहद गलत है. उन्होंने कहा कि यहां वर्तमान में 21 परिवार रहते हैं और कई परिवार यहां पिछले 150 साल से रह रहे हैं. वे सभी नगरपालिका को किराया भी देते हैं लेकिन प्रशासन द्वारा अतिक्रमण का नाम देकर और पार्किंग निर्माण के लिए उनके घर तोड़ा जाना गलत है. उनकी मांग है यदि उनके घर तोड़े जाते हैं, तो उनके पुनर्स्थापन की व्यवस्था भी शासन को करनी चाहिए।

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