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Jivit putrika Vrat 2024: जितिया व्रत का क्या है महत्व और उदेश्य ? जानें शुभ मुहूर्त…

Jivit putrika Vrat 2024: आज भारत में सभी महिलाओं द्वारा जीतिया का व्रत रखा जाएगा।आपको बता दें कि जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जितिया व्रत भी कहा जाता है, इस व्रत को संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए माताओं द्वारा रखा जाता है। आपको बता दें कि यह व्रत ज्यादातर बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, और नेपाल के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। इस व्रत में महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं और अपने पुत्र-पुत्रियों के दीर्घायु और कल्याण की कामना करती हैं।

बता दें कि, हिन्दू पंचांग के अनुसार इस साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 24 सितंबर को दोपहर में 12 बजकर 40 मिनट से शुरू हो रही है जो अगले दिन यानी 25 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 15 मिनट तक रहेगी । ऐसे में उदयातिथि के अनुसार जितिया व्रत 25 सितंबर को ही रखा जाएगा।

Jivitputrika Vrat 2024: जानें शुभ मुहूर्त

  • शुभ मुहूर्त- शाम 4 बजकर 42 मिनट से शाम 06 बजकर 14 मिनट तक।
  • ब्रह्रा मुहूर्त- सुबह 04 बजकर 36 मिनट से सुबह 5 बजकर 21 मिनट तक।
  • अमृत काल- दोपहर 12 बजकर 12 मिनट से लेकर 01 बजकर 48 मिनट तक।
  • विजय मुहूर्त- दोपहर 02 बजकर 13 मिनट से लेकर दोपहर 03 बजे तक।
  • गोधूलि मुहूर्त- शाम 06 बजकर 12 मिनट से शाम 06 बजकर 38 मिनट तक।

Jivitputrika Vrat 2024: जितिया व्रत पर क्या बन रहा है योग

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, इस वर्ष जितिया व्रत पर द्विपुष्कर नाम का योग बन रहा है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र में इस योग को बहुत ही शुभ योग माना जाता है। यह योग 25 सितंबर को सुबह 06 बजकर 11 मिनट से शुरू होकर रात के 12 बजकर 38 मिनट तक रहेगा। 

Jivitputrika Vrat 2024: जितिया व्रत का महत्व

जीवित्पुत्रिका व्रत का मुख्य उद्देश्य संतान की सुरक्षा, दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए भगवान की कृपा प्राप्त करना है। यह व्रत विशेष रूप से माताओं द्वारा किया जाता है, और इसमें संतान की लंबी उम्र और उनके जीवन में आने वाली कठिनाइयों से बचाव की प्रार्थना की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत को करने से संतान पर आने वाले सभी कष्ट और आपदाओं से रक्षा होती है।

यह व्रत मुख्यतः बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में बहुत लोकप्रिय है। इसे विशेष रूप से अश्विन मास की अष्टमी तिथि को किया जाता है। माताएं पूरे दिन उपवास रखती हैं, जल तक नहीं ग्रहण करतीं, और संतान के कल्याण की कामना करती हैं। इस व्रत का उद्देश्य माता और संतान के बीच के अटूट प्रेम और समर्पण को भी उजागर करना है, जिससे संतान के जीवन में सुख, समृद्धि, और दीर्घायु बनी रहती है।

Jivitputrika Vrat 2024: जानें पूजाविधि

इस दिन जो भी महिलाएं व्रत करती हैं वह सबसे पहले यानी की सूर्योदय से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं और व्रत करने का संकल्प लेती हैं। पूजा के लिए एक साफ स्थान पर भगवान जीमूतवाहन, जिन्हें इस व्रत का प्रमुख देवता माना जाता है, की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है। पूजा सामग्री में जल, चावल, फल, फूल, धूप-दीप, कुमकुम, और मिठाई शामिल होती है। यह व्रत सबसे कठिन माना जाता है।

क्योंकि महिलाएं इस दिन पूरा निर्जला उपवास रखती हैं, यानी बिना जल ग्रहण किए व्रत का पालन करती हैं, और शाम के समय जीमूतवाहन की कथा का वाचन या श्रवण करती हैं। पूजा के अंत में पुत्रों की सुख-समृद्धि और दीर्घायु की कामना की जाती है। अगले दिन, नवमी को व्रतधारी महिलाएं पारण के साथ व्रत का समापन करती हैं, जिसमें प्रसाद ग्रहण किया जाता है।

Jivitputrika Vrat 2024: जीवित्पुत्रिका व्रत की जानें कथा

इस व्रत की कथा के अनुसार, सतयुग में राजा जीमूतवाहन एक धर्मपरायण और परोपकारी राजा थे। उन्होंने अपना राज्य अपने भाइयों को सौंपकर वन में रहने का निर्णय लिया। वन में जीमूतवाहन को नाग जाति के एक वृद्ध व्यक्ति से पता चला कि गरुड़ हर दिन एक नाग को भोजन के रूप में ले जाते हैं। उन्होंने नागों को बचाने का निश्चय किया और स्वेच्छा से गरुड़ को अपना शरीर अर्पित कर दिया।

जब गरुड़ ने जीमूतवाहन को पकड़कर ले जाने की कोशिश की, तब उनकी वीरता और परोपकार से प्रभावित होकर गरुड़ ने उन्हें मुक्त कर दिया और वचन दिया कि वह अब से नागों को नहीं खाएंगे। इस व्रत के माध्यम से माताएं अपने पुत्रों की सुरक्षा और दीर्घायु के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं।  

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