Saturday, May 24, 2025

Haldwani: कुमाऊं के सबसे बड़े अस्पताल की दुर्दशा, सीटी स्कैन मशीन अक्षम; जांच के लिए निजी संस्थाओं की प्रतिस्पर्धा

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कुमाऊं के सबसे बड़े अस्पताल सुशीला तिवारी अस्पताल में सीटी स्कैन मशीन दो दिन से खराब है। कुमाऊं और उत्तर प्रदेश से यहां आने वाले मरीजों को इस वजह से मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। चेन्नई से जापानी तकनीक की सिटी स्कैन मशीन की मरम्मत करने के लिए विशेषज्ञ बुलाए गए हैं।

हर दिन सुशीला तिवारी अस्पताल में सैकड़ों मरीज आते हैं। इनमें सत्तर से आठ मरीजों को हर दिन सीटी स्कैन किया जाता है। मरीजों को दो दिन से सीटी स्कैन नहीं कराया जा रहा है क्योंकि मशीन में एक खराबी हुई है। इमरजेंसी मशीनों को सबसे अधिक परेशानी सीटी स्कैन मशीन खराब होने से होती है। यहां सीटी स्कैन की सुविधा नहीं है, जो गंभीर स्थिति में पहुंच रहे मरीजों के लिए उपलब्ध है। इसलिए, गंभीर मरीजों को निजी जांच केंद्रों में जांच करना पड़ रहा है। मशीन खराब होने से गरीब कैंसर रोगियों के लिए भी मुश्किलें खड़ी हो गई है।

शरीर में चोट, पेट, फेफड़े या न्यूरो संबंधी समस्याओं से पीड़ित लोगों को सीटी स्कैन जांच के लिए कठिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा है। जब वे अस्पताल पहुंचते हैं, तो उन्हें मशीन ठीक होने के अनुसार एक अग्रिम तारीख दी जाती है। मरीजों को ये भी बताया जा रहा है कि वे पूर्व अस्पताल प्रबंधन से सीटी स्कैन करने के लिए आने से पहले जानकारी लें। मामले में मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य प्रो. अरुण जोशी ने बताया कि कल से सीटी स्कैन मशीन बंद है। इसे बनाने के लिए चेन्नई से एक विशेषज्ञ दल आ रहा है। मशीन को प्राथमिकता के आधार पर ठीक करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

मरीजों की बात-
कैंसर रोगी बरेली रोड निवासी हयात सिंह ने बताया कि उनकी कैंसर की जांच होनी है। उसके लिए तारीख भी दी गई थी और जब तारीख पर आए तो बताया कि सीटी स्कैन मशीन खराब है। अस्पताल प्रबंधन से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मशीन 15 दिन के भीतर ठीक हो पाएगी। रुद्रपुर निवासी मदन राम का कहना है कि जांच कराने के लिए पूर्व में तारीख दी गई थी। अस्पताल पहुंचकर यह तक नहीं बताया गया सीटी स्कैन मशीन कब तक ठीक हो पाएगी।

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400 से 1100 रुपये में होता है सीटी स्कैन
सुशीला तिवारी अस्पताल में नैनीताल, ऊधमसिंहनगर और यूपी से भी मरीज पहुंचते हैं। यहां 400 से 1,100 रुपये के भीतर ही मरीजों को सीटी स्कैन की सुविधा मिलती है जबकि निजी अस्पतालों में मरीजों को तीन गुना से अधिक धनराशि खर्च करनी पड़ती है। दाम कम होने के चलते सामान्य मरीज इंतजार भी कर लेते हैं। पर गंभीर मरीजों को मजबूरन निजी जांच केंद्रों में जाना पड़ रहा है।

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