कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएसी) की बंद कमरे में बैठक पर संयुक्त राष्ट्र में भारत के पूर्व स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने मंगलवार को कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, अंतरराष्ट्रीय समुदाय में आज पाकिस्तान की वास्तविक स्थिति यह है कि कोई भी देश उसकी बातों को गंभीरता से नहीं लेता और न ही उसके परमाणु हथियार और सिंधु जल समझौते के निलंबन पर हमले की धमकी का भारत पर कोई असर होता है।
अकबरुद्दीन ने कहा, बहुपक्षीय संगठनों का इस्तेमाल करके दुनिया का ध्यान आकर्षित करने का पाकिस्तान का प्रयास नया नहीं है। हमने इसे काई बार देखा है। इस बार उसने 60 वर्षों में पहली बार एक ऐसे एजेंडा पेश करने की कोशिश की, जिस पर पहले कभी चर्चा नहीं हुई थी। वह है भारत-पाकिस्तान सवाल। भारत-पाकिस्तान सवाल पर आखिरी बार औपचारिक चर्चा 1965 में हुई थी। पाकिस्तान ने सोचा कि इसके जरिए वह भारत-पाकिस्तान के मुद्दे को फिर से अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाकर चर्चा का विषय बना सकता है। लेकिन यह केवल एक दिखावा था।
पूर्व राजनयिक ने कहा, पाकिस्तान सार्वजनिक कूटनीति पर ज्यादा फोकस करता है। असल में वह इन मंचों का उपयोग अपने देश की छवि को सुधारने के लिए के लिए करता है, न कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंभीर वार्ता के लिए। इसलिए उसका प्रयास विफल हो गया। दिखावा काम नहीं आया। सुरक्षा परिषद ने उसके मामले को स्वीकार ही नहीं किया। उन्होंने कहा, यह पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका है, जो महीनों से 15 देशों के साथ मिलकर इस मुद्दे पर काम कर रहा था। फिर पता चला कि जो वह चाहता है, उसे स्वीकार नहीं किया जा रहा है।
अकबरुद्दीन ने बताया कि सुरक्षा परिषद इस तरह से काम करता है.. सबसे पहले प्रस्ताव आता है, फिर अध्यक्षीय बयान आता है, फिर प्रेस बयान और अंत में सुरक्षा परिषद के प्रमुख प्रेस से मौखिक रूप से कुछ कहते हैं। इन चारों में से कोई भी बात इस बैठक के बाद नहीं हुई। इसका मतलब है कि पाकिस्तान ने जो भी कोशिश की, वो पूरी तरह विफल रही। आप देख सकते हैं कि पाकिस्तान की कोशिशों का कोई असर नहीं पड़ा। इतनी कोशिशों के बावजूद उन्हें कोई समर्थन नहीं मिला।
उन्होंने कहा, जो होना था, वही हुआ – इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है। उन्होंने कहा कि उन्हें पहले से पता था कि पाकिस्तान को कोई समर्थन नहीं मिलेगा, क्योंकि आज की दुनिया में पाकिस्तान को एक गंभीर और भरोसेमंद देश नहीं माना जाता। हर कोई जानता है कि पाकिस्तान की कोशिशें सिर्फ दिखावे और प्रचार के लिए होती हैं, ना कि किसी गंभीर संवाद या समाधान के लिए। वह सिर्फ मंच पर बोलना चाहता है, लेकिन असली बातचीत में रुचि नहीं रखता।
उन्होंने पहलगाम आतंकवादी हमले की जांच की पाकिस्तान की मांग का चीन द्वारा समर्थन किए जाने पर भी प्रतिक्रिया दी। अकबरुद्दीन ने कहा, यह एक ऐसा खेल है जिसे पाकिस्तान नियमित रूप से खेलता है। यह एक ऐसा खेल है जिसमें वह लड़खड़ा जाता है। यह एक ऐसा खेल है, जिसमें उसका एकमात्र सदाबहार मित्र चीन है। लेकिन बाकी दुनिया आगे बढ़ चुकी है, वह पाकिस्तान को उसकी वास्तविकता के रूप में पहचानती है।