देहरादून । शहर की पहचान देहरादूनी लीची की मिठास अब विदेश में भी घुल रही है। उद्यान विभाग के देहरादून स्थित सर्किट हाउस राजकीय उद्यान से आठ क्विंटल लीची लंदन भेजी गई है। राज्य गठन के बाद यह पहली बार है, जब इस ऐतिहासिक उद्यान में उत्पादित देहरादून की लीची का निर्यात हुआ है।
देहरादून की दून एग्रो इंटरनेशनल फर्म ने एपीडा के सहयोग से दिल्ली से फायटोसेनेटरी सर्टिफिकेट प्राप्त कर यह लीची लंदन भेजी है। इसी फर्म को सर्किट हाउस उद्यान में इस बार लीची व आम का ठेका दिया गया है।
रोजसेंटेड लीची ने इस बार की लंदन यात्रा-
वर्ष 1910 में स्थापित सर्किट हाउस राजकीय उद्यान में उत्पादित देहरादूनी रोजसेंटेड लीची ने इस बार लंदन की सैर की है। दरअसल, उद्यान में आम व लीची का ठेका लेने वाली फर्म दून एग्रो इंटरनेशनल ने लीची के निर्यात की योजना बनाई। फर्म के निदेशक अली शान के अनुसार, लीची की गुणवत्ता समेत विभिन्न बिंदुओं पर कदम उठाए गए। उद्यान प्रभारी दीपक पुरोहित का इसमें सहयोग लिया गया। मौसम की मार देहरादूनी पर न पड़े, इसके लिए फल के गुच्छों पर जापान से मंगाए गए वाटर प्रूफ बैग लगाए गए।
अली शान ने बताया कि लीची के निर्यात के लिए फायटोसेनेटरी सर्टिफिकेट अनिवार्य होता है। राज्य में इसके लिए फायटोसेनेटरी लैब नहीं है, जो इसे जारी कर सके। इस बीच लंदन की कंपनी से आठ क्विंटल लीची की डिमांड आने पर वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत गठित एपीडा यानी एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथारिटी के सहयोग से दिल्ली स्थित फायटोसेनेटरी लैब से सर्टिफिकेट प्राप्त किया गया। इसमें फल की गुणवत्ता समेत अन्य मानकों को कसौटी पर परखा जाता है।
कितने क्विंटल रोजसेंटड लीची भेजी गई लंदन ?
सर्टिफिकेट मिलने के बाद 13 बाक्स में आठ क्विंटल देहरादूनी रोजसेंटड लीची की खेप लंदन भेज दी गई। उद्यान विभाग के उपनिदेशक डा महेंद्र पाल के अनुसार, सर्किट हाउस उद्यान में उत्पादित लीची उच्च गुणवत्ता की है। उन्होंने कहा कि राज्य में फायटोसेनेटरी लैब के लिए प्रयास किए जाएंगे, ताकि यहां से अन्य फल, सब्जी का भी निर्यात भारी मात्रा में हो सके।
धर्मपुर बाजार में लीची के विक्रेता इरशाद अहमद कहते हैं कि वे पिछले 15 वर्षों से लीची बेचने का काम करते हैं हालांकि ये केवल कुछ महीनों का ही फल है लेकिन शेष मौसम में वे दूसरे फलों का काम करते हैं। इरशाद अहमद कहते हैं कि लोग आकर देहरादून की लीची की ही मांग करते हैं। जिससे देहरादून की लीची की डिमांड काफी अच्छी रहती है।
लीची के लिए दून घाटी लंबे समय से मशहूर रही है। देहरादून की लीची को लेकर एक पहलू ये भी है कि आवासीय और कमर्शियल भवनों के बढ़ते हुए निर्माण के कारण शहरी क्षेत्र में लीची उत्पादन में कमी आई है लेकिन चटख रंग लिए गुलाब की खुश्बु वाली दून की लीची के शौकीनों की तादाद में कहीं कोई कमी नहीं आई है। देहरादून की लीची देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले पर्यटक और मेहमान मज़े से खाते भी हैं और साथ लेकर भी जाते हैं।
देहरादून की निवासी कंचन सिंह कहती हैं कि उनके खुद के परिवार को तो देहरादून की लीची ही सबसे ज्यादा अच्छी लगती है। हालांकि उत्तराखंड में रामनगर और कोटद्वार में भी काफी तादाद में लीची पैदा होती है लेकिन दून की लीची की बात ही कुछ और है। आगे वे कहती हैं कि हर साल उनके रिश्तेदार भी लीची खरीदकर ले जाते हैं। कलकत्ता से देहरादून घूमने पहुंची कमला बिष्ट कहती हैं मेरे लिए तो लीची का मतलब सिर्फ देहरादून की लीची ही है क्योंकि ऐसी खुश्बू और मिठास कहीं और की लीची में है ही नहीं है।
लीची एक ऐसा फल है जो लंबे समय तक स्टोर नहीं किया जा सकता है और महज़ एक-डेढ़ महीने ही लीची का मौसम रहता है लेकिन इसीलिए देहरादून की लीची देखते ही मन ललचाए और खाए बिना रहा ना जाए।