यह संभव है कि आपमें से कई लोगों ने किसी उत्तम नस्ल के कुत्ते को पाला हो। आज हम आपको उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के एक ऐसे मां-बेटे से मिलवाने जा रहे हैं, जो बाजार के आवारा कुत्तों को पालने का कार्य कर रहे हैं, बजाय कि किसी उच्च नस्ल के कुत्ते को।
तीन दशकों से कुत्तों की देखभाल में समर्पित माँ – बेटे
गुजरे तीस सालों में, अल्मोड़ा के निवासी जोशी खोला में निवास करने वाली ममता खत्री ने अस्थायी घर पाए आवारा कुत्तों की देखभाल करने का काम किया है। उनके बेटे भी इसमें उनके साथ हैं। इन दोनों का मानना है कि आजकल बड़ी नस्ल के कुत्ते पालना पसंद किया जाता है, लेकिन उन्हें आवारा कुत्तों की देखभाल करना पसंद है, क्योंकि उनसे उनका गहरा जुड़ाव है।
बेसहारा और चोटिल कुत्तों की देखभाल करने में खपाया अपना जीवन
बताया जाता है कि अब तक ममता और उनके बेटे तुषार ने लगभग 50 से अधिक आवारा कुत्तों की देखभाल की है। उनके परिवार के सदस्य भी उनके साथ मिलकर इस काम में सहायता करते हैं। इसके अतिरिक्त, अगर किसी बाजार में कोई कुत्ता घायल होता है या फिर वह अकेला होता है, तो उन्होंने उसे घर लाकर अपनाया है। इसके साथ ही, लोग उनके यहां से पाले गए कुत्तों को भी अपनाते हैं। तुषार के लिए कुत्तों से बहुत गहरा स्नेह है, जिसका परिणामस्वरूप उन्होंने उन आवारा कुत्तों की तस्वीरें फ्रेम में लगाकर अपने घर की दीवारों पर सजाया है।
ममता खत्री बताती हैं कि उन्होंने स्ट्रीट डॉग्स को पालकर, लगभग 30 वर्ष पूरे किए हैं। उन्हें यह प्यार उनके गाँव में गाय, बकरी, कबूतर, और खरगोश जैसे विभिन्न पशुओं को पालते हुए बचपन से आया है। जब उनकी शादी अल्मोड़ा में हुई, तब उन्होंने भी इन सड़क कुत्तों को देखा और उनकी देखभाल शुरू की। उनके बच्चों ने भी उनके प्रेरणा से कुत्तों को गोद लिया और अब उनके पास 50 से भी अधिक कुत्ते हैं।
जब उनका बेटा स्कूल जाता था, तो वह सड़क के कुत्ते को पकड़कर घर लाकर आया करता था। उसके बाद से ही उनके बेटे ने भी सड़क के कुत्ते को अपनाना शुरू किया। उन्होंने बताया कि जो सड़क के कुत्ते को वे पालते हैं, वहां लोग उनके पास गोद लेने भी आते हैं। उनका मानना है कि ऐसे ही सड़क के कुत्ते की देखभाल करना जारी रखेंगे।