हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर गंभीरता से संज्ञान लिया है, जिसमें डेटिंग के दौरान नाबालिग प्रेमी युगल में से केवल लड़के को ही गिरफ्तार करने पर विचार किया गया है। हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान जानकारी दी कि हल्द्वानी जेल में इस तरह के आरोपों से जुड़े करीब 20 किशोर बंद हैं, और इस पर केंद्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा गया है।
कुछ मामलों में लड़कियों को बड़ा होने पर भी केवल लड़कों को ही कस्टडी में लिया जाता है और उन्हें आपराधिक अपराध में शामिल कर जेल भेज दिया जाता है, जबकि उन्हें गिरफ्तार किया जाने की बजाय उनकी काउंसिलिंग होनी चाहिए। इस तरह की स्थिति में उस उम्र में जब उसे स्कूल या कॉलेज में होना चाहिए, वह जेल में बंद होते हैं।
मुख्य न्यायाधीश रितू बाहरी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। अधिवक्ता मनीषा भंडारी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करते हुए कहा था कि नाबालिग लड़के-लड़कियों की डेटिंग के मामले में हमेशा दोषी लड़कों को ही गिरफ्तार किया जाता है। सुनवाई के दौरान कोर्ट के संज्ञान में आया कि हल्द्वानी जेल में ऐसे आरोपों से संबंधित 20 किशोर बंद हैं। इस मामले में हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से इस विषय पर जवाब तलब किया है।
जेल भेजने से पहले ऐसे मामले में होनी चाहिए कॉउन्सिलिंग
याचिकाकर्ता ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत ऐसे मामले में लड़के, लड़कियों और उनके परिजनों को काउंसलिंग की आवश्यकता है। उनकी याचिका में विशेष रूप से बताया गया कि कानून के मुताबिक 16 से 18 साल के बच्चों को दंड देने के बजाय उनकी मानसिक स्थिति को जानने के लिए एक बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए। यहां तक कि पॉक्सो एक्ट के कुछ धाराओं के तहत भी नाबालिगों को सीधे जेल भेजा जाता है, जिस पर याचिकाकर्ता ने विचार करने की मांग की। उन्होंने कहा कि नाबालिगों को सीधे जेल भेजने से पहले उनकी काउंसलिंग अवश्य कराई जानी चाहिए।