पशुओं की कई बीमारियों के इलाज में भी यह घास बहुत उपयोगी है। यह उनके लिए इम्यून बूस्टर के रूप में काम करती है और विटामिन सी से भरपूर होती है। इसका मुख्य उपयोग पशुओं में त्वचा एलर्जी, निमोनिया, श्वसन तंत्र की समस्याएं जैसे ब्रोंकाइटिस आदि के उपचार के लिए होता है। इसे पशुओं को खिलाया भी जा सकता है।
दूधी घास एक औषधीय जड़ी-बूटी है, जिसका उपयोग आयुर्वेद में बीमारियों के इलाज में किया जाता है। इसे तोड़ने पर इसके पौधे से दूध जैसा पदार्थ निकलता है, इसलिए इसे दूधी घास कहा जाता है। इसमें एंटी-डायबिटिक गुण होते हैं, जो ब्लड शुगर लेवल को कम करने में मदद करते हैं। इसलिए, डायबिटीज के मरीजों को इसका सेवन करने की सलाह दी जाती है। मधुमेह के लक्षणों को कंट्रोल करने के लिए दूधी घास का सेवन लाभकारी होता है। दूधी घास का पाउडर डायबिटीज सहित कई अन्य बीमारियों से राहत दिलाने में भी कारगर होता है।
डायबिटीज रोगियों के लिए दूधी घास बहुत फायदेमंद होती है। यह ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल में रखने में मदद करती है। दूधी घास के काढ़े का सेवन करने से डायबिटीज रोगियों को काफी लाभ मिलता है।
छोटे बच्चों के पेट में कीड़े होने से पेट में दर्द, भूख में कमी और कमजोरी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। ऐसे में दूधी घास का पाउडर दूध में मिलाकर पिलाने से पेट के कीड़े ठीक हो जाएंगे।
दमा या अस्थमा के मरीजों को भी दूधी घास से कई फायदे होते हैं। दूधी घास का काढ़ा पीने से अस्थमा के लक्षणों से आराम मिलता है। इसके अलावा, खांसी-जुकाम की समस्या से राहत पाने के लिए भी दूधी घास का सेवन किया जा सकता है।
दूधी घास को जमीन से काटकर छांव में सुखाएं। सूखने के बाद इसे पीसकर चूर्ण बना लें। इस घास का चूर्ण 1 से 3 ग्राम के बीच सेवन करें। इसके उपयोग से पहले एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर लें।