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Sawan में भूलकर भी न करें इन चीजों का सेवन, आखिर क्या है वैज्ञानिक कारण ?

Sawan 2024: सावन का महीना पूर्णतया भगवान शिव को समर्पण होता है। विष्णु पुराण में बताया गया है कि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से जगत के पालनहार भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करने के लिए चले जाते है और कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जाग जाते है। इस दौरान सृष्टि का संचालन देवों के देव महादेव करते हैं। इसके लिए सावन माह में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है।

सावन महीने में भगवान शिव की पूजा करने से सभी की मनोकामना पूरी हो जाती है। साथ ही मृत्यु लोक में सभी प्रकार के भौतिक एवं सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। इस महीने में शास्त्र द्वारा निर्धारित नियमों का पालन किया जाता है। इन सभी नियमों का पालन करने से महादेव प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा साधक पर बरसती है। क्या आपको पता है कि शास्त्रों में सावन के दौरान दही और साग न खाने की सलाह क्यों दी गई है ? चलिए जानते है इस बारे में।

भगवान शंकर को क्यों प्रिय है सावन ?

चिरकाल में भगवान शिव ने माता सती के सतीत्व होने के बाद विवाह न करने का प्रण लिया था। तत्कालीन समय में तारकासुर ने ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या की। कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर तारकासुर को मनोवांछित वरदान मिल गया। इस वरदान के तहत तारकासुर को केवल भगवान शिव के पुत्र ही हरा सकते थे बता दें कि ब्रह्मा जी से वरदान पाकर तारकासुर बहुत शक्तिशाली हो गया था। उसने अपने बल से स्वर्ग लोक पर अधिपत्य स्थापित कर लिया।

उस समय देवताओं ने कामदेव को भगवान शिव को मनाने का दायित्व दिया। हालांकि, इस काम में कामदेव बुरी तरह से असफल रहें। भगवान शिव की प्रतिक्रिया को देखकर मां पार्वती अप्रसन्न हो गई। मां पार्वती को ऐसा प्रतीत हुआ कि शिवजी ने उनका तिरस्कार किया है। इसका वर्णन कालिदास द्वारा रचित कुमारसंभवम् ग्रंथ में है। उस समय मां पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने का प्रण लिया। कालांतर में मां पार्वती ने कठिन तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। उस समय भगवान शिव ने मां पार्वती से विवाह करने का वचन दिया।

ऐसी मान्यता है कि मां पार्वती द्वारा सोलह सोमवार का व्रत करने से भगवान शिव प्रसन्न हुए थे। वहीं, माता सती के सतीत्व होने के बाद भगवान शिव ने क्रोधित होकर भद्रकाली और वीरभद्र को राजा दक्ष के निवास स्थल कनखल भेजा था। जहां, वीरभद्र ने राजा दक्ष का वध कर दिया था। तब देवताओं ने मिलकर भगवान शिव की प्रार्थना की। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने राजा दक्ष को अभय वरदान दिया। उस समय राजा दक्ष ने भगवान शिव से क्षमा याचना की और कनखल में निवास करने की याचना की। राजा दक्ष की याचना पर भगवान शिव ने उन्हें यह वरदान दिया कि सावन महीने में वे कनखल में ही वास करेंगे। कालांतर से भगवान शिव सावन के महीने में कनखल आते हैं।

जानें क्या है वैज्ञानिक महत्व ?

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो. गिरिजाशंकर शास्त्री का कहना है कि इस समय दक्षिणायन काल होने से अग्नि की मंदता समस्त जीव-जंतु पेड़-पौधे, वनस्पतियां सोमतत्व से जीवन को प्राप्त करते हैं। इस दौरान पेड़-पौधे एवं लताएं बढ़ते क्रम में रहते हैं। वहीं, लताओं से बरसाती कीट-पतंगे पराग या रस प्राप्त करते हैं। इससे पत्ते दूषित होते हैं। वहीं, इन पत्तों का सेवन दूध प्रदान करने वाले पशु ग्रहण करते हैं। इसके चलते सावन महीने में साग और पशुओं द्वारा प्रदत दूध या दही के सेवन से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। इसके अलावा, दही के सेवन से सर्दी-खांसी और जुकाम का भी खतरा ज्यादा बढ़ जाता है। इस समय में तापमान में भी असंतुलन रहता है। इसलिए सावन महीने में साग या दही का सेवन करना मना होता है।

क्या है धार्मिक महत्व ?

भगवान शिव को पूजा के समय बेलपत्र, भांग के पत्ते, पान के पत्ते समेत कई प्रकार के पत्ते चढ़ाए जाते हैं। वहीं, दूध और दही से अभिषेक किया जाता है। इन चीजों के अर्पण से भगवान शिव बहुत खुश हो जाते है। उनकी कृपा साधक पर बरसती है। धर्म पंडितों का कहना है कि भगवान शिव को प्रकृति से बेहद प्यार है। अतः सावन में साग और दही का सेवन नहीं करना चाहिए।

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